( किस्त - बाईस )
पी.जी.आई के नर्कवास के दौरान एक और ऐसा अनुभव हुआ जिसने उस क्षण मन में एक अजीब सी दहशत पैदा कर दी थी...।
दिन के यही कोई ग्यारह-साढ़े ग्यारह बजे रहे होंगे । रोज भाई-बहन और भतीजा अंकुर टैक्सी से कानपुर से लखनऊ अप-डाउन करते थे...। जब ये लोग सुबह आ जाते तो रात को मेरे साथ रुका सदस्य या तो होटल चला जाता या वापस कानपुर...। स्नेह के पास हर वक़्त हम तीन-चार लोग बने रहने की कोशिश करते थे । उस दिन भी यही तैयारी थी कि अचानक हमारी मंजिल के वेटिंग रूम के पास मुझे भीड़ दिखी...। उत्सुकतावश मैं वहाँ गई तो सन्न रह गई...। नीचे बरामदे में काफ़ी गहरा काला धुआँ भरा हुआ था...। लोगों के शोरगुल के साथ धड़ाधड़ खिड़कियों के शीशे टूटने की आवाज़ माहौल को और भी दहशतनुमा बना रही थी ।
नीचे के इमरजेन्सी वार्ड के पास से शोरगुल उठ रहा था । शायद आग वहीं लगी थी । भीड़ में तरह-तरह की बातें , " अरे , जहाँ आग लगी है , वहाँ काफ़ी लोग फँसे हैं...सब अशक्त हैं...। अगर आग पूर अस्पताल में फैल गई तो...? "
काला धुआँ नीचे के बरामदे से और काला-घना होता हुआ फैलता जा रहा था...। गबरा कर भाई को फोन किया तो पता चला , वह और गुड़िया धुएँ के उस पार नीचे ही फँसे हैं...। भतीजा ऊपर ही था । स्नेह के पास मैं और वह घबराए हुए खड़े थे...। बाकी मरीज तो चल फिर रहे थे पर यह...? एकदम अशक्त...लाचार...। आग अगर भीषण रूप से फैलती हुई ऊपर आ गई तो इसे लेकर भागेंगे कैसे...? नीचे से भाई लगातार मोबाइल पर ढांढस बँधा रहा था , " घबराना नहीं , स्नेह दीदी के पास ही रहना...। " सिस्टर ने इमरजेन्सी डोर खोल दिया था , " आप लोग परेशान मत होइए...। आग पर काबू पाया जा रहा है...। फिर भी अगर कोई परेशानी होती है तो आराम से आप लोग इस रास्ते सीढ़ियों से उतर जाइएगा...। यह सीढ़ी सीधे सड़क की ओर जाती है...। "
पेडियाट्रिक वार्ड के तीमारदारों ने अपने-अपने बच्चों को गोद में उठा लिया था और भागने की मुद्रा में इस तरह मुस्तैद खड़े थे कि जैसे हल्की सी भी चिंगारी दिखी तो वे सरपट भाग खड़े होंगे , पर इस सरपटबाजी के ख़्याल में वे यह भूल गए थे कि रास्ता एक ही था , जो ज्यादा चौड़ा भी नहीं था । ऐसे में अगर भगदड़ मची तो अपने बच्चों के साथ वे भी घायल हो सकते हैं ।
अपनी अशक्त बहन के लिए जब मैने वहाँ की सिस्टर से अपनी चिन्ता व्यक्त की तो उस सह्रदय सिस्टर ने व्हील चेयर उसके बेड के पास लाकर कहा , " आप घबराइए मत आण्टी...वैसे तो यहाँ ऊपर कोई खतरा नहीं है , पर अगर खतरा हुआ तो आप और हम तो हैं न...। आपकी बहन को इस व्हील चेयर पर दोनो तरफ़ से उठा कर सुरक्षित बाहर ले जाएँगे...। "
उसकी बात सुन कर थोड़ी तसल्ली जरूर हुई कि अच्छे इंसान अभी भी दुनिया में हैं , पर बावजूद इसके अब भी धुकधुकी बनी हुई थी कि भगदड़ में अगर कुर्सी न संभली तो...?
वक़्त जैसे थम सा गया था और उसके साथ आग और धुआँ भी...पर किसी कर्मचारी के भीतर कुछ ऐसा भरा था जिसे वह धुएँ के बहाने उगल देना चाहता था , " आण्टी जी...आप नहीं जानती...हर दो-तीन महीने में यहाँ आग लगती है...। अरे नहीं , यह लगती नहीं , लगाई जाती है...। इसके बहाने करोड़ों का खेल जो होता है...। सरकार से मदद मिल जाती है...। फिर वर्ल्ड हेल्थ आर्गेनाइजेशन भी तो है न...मदद के लिए...। आप ही बताइए , लैट्रिन में क्या टूटा था...? कुछ नहीं न...? आप ने गन्दगी साफ़ करने के लिए कम्प्लेन्ट की तो पूरा लैट्रिन ही तोड़ दिया गया...। "
" पर इस खेल में तुम शामिल नहीं...? "
" अरे , यह बड़ों का खेल है मेमसाहब...। आप नहीं समझेंगी इसकी गहराई को...। इतनी गहरी राजनीति है यहाँ कि बड़े से बड़ा फ़ेल हो जाए इसे समझने में...। "
" तुम्हारा नाम क्या है...? यहाँ क्या काम करते हो...? तुम्हे यह सब कैसे पता...? क्या इसकी शिकायत कभी किसी बड़े अधिकारी से की है...? "
" अरे बाप रे ! मरना है क्या मुझे...? " मेरे इतने सारे सवाल सुन कर वह सरपट भाग लिया...। दुःख और परेशानी के क्षणों में भी वहाँ खड़े लोगों के चेहरे पर मुस्कराहट उभर आई , " सही कह रहा है बेचारा...। छोटा आदमी है , बात खुल गई तो सच में बेमौत मारा जाएगा...। "
" इस अस्पताल का खज़ाना भरा हुआ है पर फिर भी इन बेचारों को चुटकी भर ही दिया जाता है...। मन जला रहता है तो मुँह से ऐसी बातें निकलती ही हैं...। "
" सच कह रहे हैं...पैसे की कमी नहीं है यहाँ...। देखिए न...चौबीसों घण्टे कहीं-न-कहीं तोड़फोड़...मरम्मत...। भीतर ऑपरेशन चलता रहता है और बाहर ठक-ठक की आवाज़...। किसी को क्या करना है इस झंझट में पड़ कर...हम अपना मरीज देखें कि यहाँ की राजनीति...। "
लम्बा-चौड़ा बरामदा...अल्ट्रासाउण्ड के लिए बेड पर पड़े मरीजों की लम्बी लाइन लगी है...। नम्बर आने में काफ़ी समय लगता है...। मरीज की पथराई , निराश आँखों को देख कर कब तक अपने दुःख को और गहरा करें...। इसे हल्का करने के लिए कुछ तो चाहिए , सो इसी तरह की गपशप ही सही...। सच्चाई क्या है , वही लोग जानें...हमें क्या...?
हाँ भैया...हमें क्या...? सच्चाई से इसी तरह लोग किनारा कर लेते हैं तभी तो भ्रष्टाचार बढ़ता जा रहा है...। बेशर्मी की हद होती जा रही है...।
बेशर्मी की बात पर याद आया । ऊपर के वार्ड में एक ही शौचालय था...। तीमारदार-बीमारदार सब वहीं जाएँ...। एक तरफ़ देशी व विदेशी दो लैट्रिन अगल-बगल...। उसके ठीक सामने भीतर ही पेशाब करने के प्याले...। ढेर सारे बूढ़े , अधेड़ , जवान...हर उम्र के आदमी नंगे होकर पेशाब कर रहे हैं...। मजबूर होकर औरतें , लड़कियाँ भी नज़रें नीची करके जा रही हैं...। इतना बड़ा अस्पताल है तो क्या मर्द-औरत के अलग शौचालय बनाने का ख़्याल किसी को नहीं आया...? बीमार पड़ते ही क्या इन्सान इतना बेशर्म हो जाए कि परायों के सामने ही नंगा हो जाए...? बीमारी क्या आदमी को इतना लाचार कर देती है...? और तीमारदार...उनके लिए भी बेशर्मी का रास्ता ही अख़्तियार करना मजबूरी बन गया था ।
इमरजेन्सी वार्ड में कुछ ऐसे भी बेशर्म ( या मानसिक विकृत...??? ) मरीज थे जो वार्ड के अन्दर भी पर्दा किए बग़ैर ही पेशाब का पॉट लेने लगते थे । वहाँ मौजूद हयादार औरतें नज़रें घुमा लेने के सिवा और क्या कर सकती थी...। इतने बड़े अस्पताल में स्त्री-पुरुष के अलग वार्ड के लिए भी जगह नहीं...?
ये सवाल हमेशा मुझ जैसे लोगों को परेशान करते रहेंगे । यद्यपि अब ये तो तय है कि भविष्य में कभी मुझे या मेरे परिवार के किसी भी सदस्य को लौट कर , भूलवश भी ऐसे अस्पताल में नहीं जाना...। कसाइयों के हाथों अपने को सौंप देने से तो बेहतर है , अपने घर में मर जाना...। मौत से पहले इन्सान अपने घरवालों के साथ अपने दर्द को बाँट तो सकता है...। ऐसे अस्पताल में तो दर्द कम होने की बजाए और बढ़ जाता है...। हर के अन्दर इतना दर्द भरा होता है कि किसी हमदर्द को सामने पाते ही छलक जाता है...।
( जारी है )
सच है भ्रश्टाचार का ये खेल हर अस्पताल मे किसी न किसी तरह चलता रहता है मगर स्टाफ किन परिस्थितिओं मे काम करता है ऊपर वालों को इसकी भी परवाह नही। उन्हें तो पहनने के लिये ग्लव्ज़ भी उसी दिन दिये जाते हैं जब अस्पताल की इन्सपेक्शन हो या कोई वी आई पी आये। इसका खामियाज़ा उन्हें खुद को किसी रोग से पीडित हो कर चुकाना पडता है। अगर स्टाफ बोले तो आप समझ सकती हैं उसका क्या होगा। इसी लिये कई बार वो भी असंवेदनशील हो जाते हैं। धन्यवाद।
ReplyDeleteआज आपकी कई सारी पोस्ट पढ़ीं ....क्या क्या गुज़ारा जीवन में ...इतने बड़े नाम वाले अस्पतालों का ऐसा बुरा हाल ..सोचा भी नहीं जा सकता ....जानकारी देने के लिए शुक्रिया
ReplyDeletesarthak aur bhut hi sundar post....
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