अपनी बेटी के लिए
अपनी युवा बेटी के लिए
मुझे कोई भी उपमा
ठीक नहीं लगती
यद्यपि,
वह खिले हुए गुलाब सी
तरोताज़ा और खूबसूरत है
उसकी नर्म-गुलाबी त्वचा
पंखुड़ियों की कोमलता समेटे है
इसीलिए,
उसे देख कर मुझे
किसी बगीचे में खिले
खूबसूरत गुलाब की याद आई है
पर,
उस याद को मैने झटक दिया है
क्योंकि,
न जाने क्यों
गुलाब की नियति मुझे डराती है
मैं अपनी बेटी के लिए
चाँद-तारों को भी उपमित नहीं करना चाहती
जो चीज़ मेरी पहुँच से दूर है
उसे बेटी की ज़िन्दगी के
समानान्तर क्यों लाऊँ?
मुझे तो अपनी बेटी के लिए
बस यही उपमा ठीक लगती है कि
वह उगते हुए सूरज का
एक ऐसा अक्स है
जो पूरी दुनिया को रौशन करता है
पर,
उससे भी ज़्यादा
मुझे लगता है
जैसे-
मेरा डूबता हुआ जीवन
उसके ख़ूबसूरत चेहरे पर
ज़ुल्फ़ों के घने अंधेरे के बीच भी
चाँद की तरह मुस्करा रहा है
और मेरा बचपन
उसकी आँखों की झील में
एक सुनहरा सपना बन कर
डोल रहा है।
(दोनों चित्र गूगल से साभार)