औरत
गीली-धुआँती
लकड़ियों को
बार-बार
फुँकनी
से फूँक मार कर
जलाने
का प्रयास करती है
पर
लकड़ियाँ हैं कि
ज़िद्दी
आदमी की तरह
अड़ी
हुई हैं
अपनी
न
जलने की ज़िद पर
सवा
नौ बज चुके हैं
आदमी
बस
छूटने की आशंका में
चीख
रहा है
लड़कियों पर-
और
लड़कियाँ
सड़क
के किनारे बने गढ्ढों में
जमा
हो गए पानी में
काग़ज़
की नाव चलाने के
निरर्थक
प्रयास में जुटी हुई हैं
उन्हें
नहीं पता कि-
ठहरे
हुए पानी में
नाव
नहीं चलती
और
पूरी तरह गीली लकड़ी भी
बार-बार
फूँक मारने पर नहीं जलती
पर
किसी
को फ़र्क नहीं पडता
आदमी
को
रोटी
कमाने के लिए जाना है
लड़कियों
को किसी भी तरह
नाव
चलानी है-
और
इन सब खेलॊं के बीच
रोटी
ज़रूरी है
सबके
लिए
पर,
रोटी सिर्फ़ औरत पकाएगी
चुन्नू-मुन्नू
को भी रोटी चाहिए
स्कूल
के प्लेग्राउंड में
खेल-खेल
कर खाली हुए पेट को
रोटी
चाहिए
स्कूल
से आते ही
वे
चीखेंगे
रोटी
के लिए
पर,
रोटी
बने तो कैसे
लकड़ियाँ
पूरी तरह गीली हैं
उसके
गीलेपन से
किसी
को कुछ लेना-देना नहीं
सभी
को बस रोटी चाहिए
इसीलिए
अपनी
आँखों के गीलेपन की
परवाह
न करते हुए
औरत
जुटी है
किसी
भी तरह
गीली
लकड़ियों को जलाकर
रोटी
पकाने में...
-प्रेम गुप्ता ‘मानी’
(चित्र- गूगल से साभार )