कविता
सोनचिरैया की उडान
शहर,
एक घने और ख़ौफ़नाक जंगल सा
मेरी आँखों में पसरा हुआ है
और मैं
एक भटकी-डरी सोनचिरैया सी
अपने ही टूटे पंखों के बीच
सिर दिए
दुबकी हुई हूँ
सदियाँ बीत गई
पर वह त्रासद इंतज़ार
ख़त्म नहीं होता
जंगल के संकरे...ऊबड़-खाबड़ रास्ते की तरह
सोचती हूँ
दुबारा पंख उगेंगे क्या?
चीड़ के पत्तों के बीच उगा अंधेरा
और बड़ा होता जा रहा है
विकराल गिद्ध ने
उसके चारो ओर
अपने डैने फैला लिए हैं
कैसे कहूँ
तुम्हारे भीतर बैठी
वह काली खुंखार-जंगली बिल्ली
पैने पंजों से मिट्टी खुरचती
मौके की ताक में है
कब नीचे आए
लाल गोट सा सूरज
और फिर
बस एक छ्लाँग काफी है
पैने दाँतो के बीच
जंगल जलेबी सा मीठा चाँद
छटपटा रहा है
सोनचिरैया नहीं जानती
अपने आकांक्षित सपने की उडान
पर फिर भी
एक सपना उसकी मुंदी आँखों से झर रहा है
झर-झर करते ठंडे झरने की तरह
किसी दिन
यह काली बिल्ली हटेगी
और तब
वह अपने नए पंख के साथ
उड़ेगी
खुले आकाश में सूरज के साथ
(चित्र गूगल से साभार )
आशा रखिये ...
ReplyDeleteइंतज़ार के दीप जलाये रखिये ....
वो सुबह ज़रूर आयेगी ....
सुंदर रचना .
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति!
ReplyDeleteमानी बहन बहुत भावप्रवण और मँजी हुई कविता है , एकदम लाज़वाब !हार्दिक बधाई ऐसे सार्थ्क रचनाक्रम के लिए ।
ReplyDeleteकिसी दिन
ReplyDeleteयह काली बिल्ली हटेगी
और तब
वह अपने नए पंख के साथ
उड़ेगी
खुले आकाश में सूरज के साथ
संवेदनाओं से भरी बहुत सुन्दर कविता...
चर्चामंच से लिंक मिली...पहली बार आना हुआ...
यहां आ कर सुखद लगा...
आपकी कविता मन को छूने में सक्षम है....बधाई और शुभकामनाएं |
उम्मीद जगाते भाव .........
ReplyDeleteसोनचिरैया की सफल उड़ान के लिये हमारी भी हार्दिक शुभकामनायें हैं ! आसमान में गिद्ध और ज़मीन पर काली बिल्ली घात लगाए बैठी है ! ईश्वर उसकी इन विपदाओं से रक्षा करें यही कामना है ! बहुत सुन्दर रचना है ! बधाई स्वीकार करें !
ReplyDeleteबहुत ही उम्दा प्रस्तुति……………बहुत पसन्द आई।
ReplyDeletesundar!
ReplyDeleteशानदार......
ReplyDeleteयह रचना बहुत अच्छी लगी। कृपया बधाई स्वीकार करें।
जंगल जलेबी सा मीठा चाँद
ReplyDeleteछटपटा रहा है
सोनचिरैया नहीं जानती
अपने आकांक्षित सपने की उडान
पर फिर भी
एक सपना उसकी मुंदी आँखों से झर रहा है
झर-झर करते ठंडे झरने की तरह
किसी दिन
यह काली बिल्ली हटेगी
और तब
वह अपने नए पंख के साथ
उड़ेगी
खुले आकाश में सूरज के साथ
क्या कहूं, पहली बार ब्लॉग पर हूं और इतनी सुंदर रचना पढ़ने को मिली...
ख्वाब होंगे तो सच भी होंगे..जीने के लिए आत्म विश्वास बहुत जरूरी है...
फॉलो भी कर रही हूं आप भी जरूर आइए...
चीड़ के पत्तों के बीच उगा अंधेरा
ReplyDeleteऔर बड़ा होता जा रहा है
विकराल गिद्ध ने
उसके चारो ओर
अपने डैने फैला लिए हैं
कैसे कहूँ
तुम्हारे भीतर बैठी
वह काली खुंखार-जंगली बिल्ली
पैने पंजों से मिट्टी खुरचती
sunder likha hai shabd aur bhavon ka kya kahna
rachana
:)
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