Wednesday, February 4, 2009

हाशिए पर औरत

( किश्त-एक )
कहा जाता है की स्त्री दुनिया की सब से खूबसूरत , अनोखी और सबल रचना है| स्त्री न होती तो दुनिया भी संरचित न होती| अकेला पुरुष उसका एकल -स्वामित्व का दावा, उस की पौरुषीय सबलता ...सब व्यर्थ होता| स्त्री ने जन्म लेकर न केवल इन सारे तत्वों को सार्थक ज़मींन दी वरन मानसिक और शारीरिक रूप से उस की सहयोगी बन कर उस की आकाशीय बुलंदियोंको हरी, कोमल दूब सा ...पर दृढ़ आधार भी दिया| इस सच को कुछ पुरुष स्वीकार करते हैं तो कुछ अस्वीकार...| इस का रेशियो १०:९० का है|
पुरुष की तरक्की , उस के सुख, उस के अपने सशक्त व्यक्तित्व के पीछे एक स्त्री का हाथ है, इसे स्वीकार करने में उन्हें लज्जा महसूस होती है पर जब एक स्त्री को कटघरे में खडा करना हो तो इस सारी लज्जा को ताक़ पर रखने में वे पल भर की भी देरी नही करते |
पुरुषों की से एक बहुत ही पुराना टोटका है...स्त्री को अपने से कमतर आंकने का...| की उन पर कभी विशवास न करो...उन में बुद्धि ही कितनी है...स्त्री के आंचल का आसरा जिस पुरूष ने लिया, वह समाज की निगाह में गिर जाता है...| स्त्री के जीवन को वह झूले की तरह डुलाना चाहता है...कभी इस पार, तो कभी उस पार...| आज भी समाज नारी जीवन की व्ही सदियों पुरानी कहानी सुनते रहना चाहता है जिसके आंचल में दूध और आँखों में पानी है...|पानी का स्रोत सुखा नही की वह हाशिये पर...| एक झटके में उसके आंचल का दूध नकार दिया जाता है| उसके आंचल की गर्माहट , उसकी ममता की नरमाई पर इतना भारी पत्थर रख दिया जाता है की कही-न-कही स्त्री स्वीकारने लगती है की वह पुरूष की छत्रछाया में ही महफूज़ है...घर की चारदीवारी के भीतर ही उसका संसार है...और पति और बच्चो के बीच ही उसका अपना सुख भी नर्म धुप सा इच्छा की मुंडेर पर पसरा है...|बाहर की खुली हवा में तो सिर्फ़ गर्द का गुबार है...| यह गर्द का गुबार ही तो था जिसने सदियों पहले हौवा को अपने बवंडर में इस कदर लपेटा था की सारे समाज ने उसकी धूल साफ़ करने की बजाय उसपर और कीचड फेका था की इसी के कारण "आदम" ने वर्जित फल चखा...|
(अभी जारी है...)

3 comments:

  1. जो पुरुष स्त्री को कमजोर समझते हैं वे खुद ही कमजोर होते हैं ..उनमें इतनी बुद्धि नहीं होती की वे स्त्री शक्ति का आंकलन कर सके ...

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  2. Aurat ko hee apane ko hashiye se Ander mukhy dhara me Lana hoga

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