Monday, February 16, 2009

हाशिया.....

( किश्त-चार )


दुनिया की यह बात सौ प्रतिशत खरी है कि औरत एक ऐसी पहेली है जिसे कभी सुलझाया नहीं जा सकता, पर इसके साथ यह भी सच है कि हर औरत के भीतर एक ऐसा समुद्र भी है जिसमे मोती भी हैं और शैवाल भी...जिसकी जैसी नीयत होती है, उसके हाथ वही आता है।

मेरी यह बात आप को अजीब लग सकती है कि अगर "औरत" न होती तो "औरत" कभी हाशिए पर न होती। कुछ जाति विशेष की तरह पुरुषों में भी अपने पक्ष को समर्थन देने की छटपटाहट होती है। यदि किसी पुरुष ने अपराध किया है ( अपराध से यहाँ मेरा आशय किसी संगीन अपराध से नहीं है) तो उसे किसी हद तक ढाँपने का प्रयास किया जाता है, विपरीत इसके इसी तरह यदि कोई औरत अपराध करती है तो समाज, परिवार, सारे रिश्ते-नाते , सब उसे उपेक्षित करने का प्रयास करते हैं। छोटी सी थी तभी से इस वर्ग-भेद की पीड़ा ने मेरे मन को सालना शुरू कर दिया था और सोच की उम्र न होने के बावज़ूद न केवल इस पर बहुत कुछ सोचने ही लगी थी बल्कि माँ के आँख घुड़काने के बावज़ूद बोलने भी लगी थी। माँ के सबसे बडे भाई यानि मेरे बड़के मामा ने मेरी इसी आदत से नाराज़ होकर माँ से कहा था," लालमणि देख लेना, एक दिन यह् लड़की हम लोगों की नाक कटाएगी..." और माँ द्वारा बात को हल्के रूप में लेने पर गरजे थे," तुम हँस रही हो...जब यह अपनी कतरनी जैसी ज़बान और रानी झाँसी जैसे तेवर के कारण झोंटा पकड़ कर ससुराल से बाहर फेकी जाएगी तब तुम्हें मेरी बात याद आएगी...।"

माँ उत्तर नहीं दे पाई थी, उल्टे मुझे ही डाँट के चुप करा दिया था। मैं भी चुप कर गई थी । उस समय तो नहीं पर आज सोच कर हैरान हूँ कि उतनी छोटी बच्ची का भविष्य उसके मामा ने अपनी पौरुषीय हुक़ूमत के बल पर कैसे तय कर दिया था? वह् कोई भविष्यवक्ता तो थे नहीं जो जानते थे कि कल की यह चपल-शरारती छोकरी बडी होकर अंग्रेजी हुक़ूमत रूपी तनाशाही, गंदी आदतों और विकृत मानसिकता के खिलाफ़ खूब लड़ी मर्दानी की तरह तलवार खींच कर खड़ी हो जाएगी, बिना इस बात की परवाह किए कि वह सामाजिक दृष्टि के हाशिए पर है और अपनी सच्चाई सिद्ध करने के लिए उसकी ज़ुबान उसका साथ नहीं देगी और देगी भी तो कोई उसका विश्वास नहीं करेगा क्योंकि बाहर तो तलवार उसके हाथ में थी...आखिर काजल की कोठरी में रह कर कालिख से तो बचा नहीं जा सकता न...।

सच, आज कभी-कभी लगता है कि मामा भविष्यवक्ता भले ही न रहे हों पर दूरदृष्टा अवश्य थे। उन्होंने मेरी तीखी ज़ुबान, विद्रोही स्वभाव व चपलता को देख कर ही मेरे भविष्य को आंका था और जान गए थे कि औरत के प्रति समाज का जो नकारात्मक रवैया है, उसके खिलाफ़ यह लड़की अपने विद्रोही स्वभाव के कारण खड़ी होकर एक दिन हाशिए पर ज़रूर होगी और इस वजह से मायके वालो की जो नाक कटेगी सो तो कटेगी ही, इसका जीना भी दूभर हो जाएगा...।

(जारी है)




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