प्रतिबद्धता
सूरज के उगने पर
रोज देखती हूँ
खिड़की से बाहर
काली-कोलतार सनी सड़क
और
उसके गर्वित चेहरे को
सड़क को
सलामी सी देते
कतारबद्ध खड़े पेड़
चौकसी करते चौराहे
कोलाहल के बीच
बाहुपाश में भरे पदचाप
और
कपोलों पर झुक
चुम्बन को आतुर
सूर्य-रश्मियाँ - भरा बाज़ार
पर यही सड़क
सूरज के डूब जाने पर
काले नाग से फन फैलाते
अंधियारे के
शिकंजे में कसते ही
जब
हो जाती है वीरान
तब लगता है
यह सड़क नहीं
एक ज़िन्दगी है
जो-
ऊबड़-खाबड़ रास्तों,
संकरी पगडंडियों के किनारे उगे
झाड़-झंखाड़ के बीच
दुबकी-
मौत से ख़ौफ़ खाने के बावजूद
आशा का दामन छोड़ती नहीं
और
पूरी प्रतिबद्धता के साथ
दूसरी सुबह
फिर-फिर जीती है
ठीक सूरज की तरह...
(सभी चित्र गूगल से साभार)
No comments:
Post a Comment