प्रिय पाठको,
आज से मैं धारावाहिक रूप से अपनी कुछ कवितायेँ आप के सामने प्रस्तुत कराती रहूँगी...|
आपकी प्रतिक्रियाओं का इंतज़ार रहेगा...|
कविता
आहट- ज़िन्दगी कीमौत के ख़ौफ़ से
डरे- सहमे लोगों
अपनी बेकाबू सांसों को थाम लो
और आहट लो
ॠतुराज वसंत के आने की
ज़िन्दगी का पैग़ाम ले कर
शायद,
पीले, फूले सरसों के खेतों से ग़ुज़र कर
पीले कनेर का मुकुट लगा
टूटी-फूटी सडकों
खुले मेनहोल...भरे गटर और
अव्यवस्था को नज़र अंदाज़ कर
बिना अंगरक्षक के- बेख़ौफ़
एक बार फिर
अपने पुराने रौबदाब के साथ
मरी हुई मान्यताओं की धज्जी उडाने
ॠतुराज वसंत आ रहा है
माँ की पुरानी
टूटी-फूटी संदूकची से निकल कर
मेरी यादों का पन्ना फडफडा रहा है
छत की मैली अल्गनी पर
किसी बच्ची का पीला फ्राक
व्यवस्था का मुँह चिढाता
हवा का रुख़ बदल रहा है
रेत का घरौंदा,
हाथ में पूजा की थाली लिए
मंगल गीत गाती स्त्रियाँ
वसन्त के स्वागत में दहलीज़ को
हल्दी से रंगती स्त्रियाँ
ठहरो!
बेकाबू लहरें,
ॠतुराज के सतरंगी रथ के पहियों की धमक से
उठते गुबार का सीना भेद रही हैं
पर उन्हें नहीं पता
ॠतुराज वसन्त अपनी विशाल सेना के साथ
एक बार फिर फ़तह का नारा लगाएगा
और तब
ज्वालामुखी फटे-
भूकम्प के झटके से धरती का सीना काँपे
या फिर लहरों का बवंडर उठे
बार- बार
ज़िन्दगी की सौगात लेकर
वसन्त आएगा......
बेख़ौफ़- बेहिचक.
'ज़िन्दगी की सौगात लेकर/वसन्त आएगा....../बेख़ौफ़- बेहिचक.'
ReplyDeleteपूरी कविता जीवन के प्रति आशा जगाती है और जिजीविषा को परिपुष्ट करती है । विचारों के अनुरूप भाषा भी प्रवाहमयी है । आपकी रचना प।धने को मिली बहुत आभार !
प्रिय मानी जी ,
ReplyDeleteसबसे पहले तो इतनी देर से आने के लिए क्षमा चाहती हूँ |
बहुत ही सुंदर कविता ..
जिंदगी का संदेश देती हुई ....
जिंदगी को जीने की नई राह ( रास्ता ) दिखाती हुई !
आप की कलम को नमन !
हरदीप