कविता
नियति
बहुत पहले
मेरा मन
तुम्हारे आंगन में खिले
उस लाल गुलाब की तरह था
जो ठीक वसन्त के दिन खिला था
और उसके चारो तरफ़ के
वे कैक्टसी काँटे
जो उसकी नाजुक पंखुडियों को
दंशित कर रहे थे
तुमने काट कर अलग कर दिए थे
पर...बाद में सोचा कि
काँटे फिर न उगें
तुमने गुलाब ही तोड़ लिया
और फिर
उसे टाँक लिया कोट में
ठीक अपने दिल के पास
पर अब
जबकि
कई वसन्त बीत गए हैं
कई पतझरी मौसम
आए और गए
तुम्हारे कोट का रंग
बदरंग हो गया है
तुमने वह कोट छोड़ कर
नया कोट सिलवा लिया है
वह बदरंग कोट
तुम्हारी अलमारी के भीतर
टँगे हैंगर पर
लावारिस सा पडा है
तुम उस कोट के साथ भूल गए
उस खूबसूरत गुलाब को
जो कभी टाँका था तुमने
ठीक अपने दिल के पास
पर अब
अपनी लालिमा खोकर
वह गुलाब झर रहा है
पंखुड़ी-पंखुड़ी
पैंट के पांयचों के पास....
प्रिय मानी जी ,
ReplyDeleteइस कविता का अपना ही रंग है ......
गुलाब का फूल सूखा ही चाहे क्यों न हो किसी की याद बनाए रखता है !
अब यह तो फूल टाँकने वाले पर है कि उसके जीवन में इस फूल की क्या अहमियत है ...? बदलते कपड़ों के साथ क्या वह किसी के लिए दिली भावनाएँ भी बदल देता है क्या ?
प्रेम को एक नई परिभाषा देती यह कविता !
हरदीप