कविता
जंगल होता शहर
एक घने और डरावने जंगल में
तब्दील होता - शहर
हवा के झोंके से
पत्ता भी थरथराता है
तो- साँसे थमने लगती हैं
साँसों के थमने-रुकने के खेल के बीच भी
नन्हीं चिरैया की चीं-चीं की पुकार
साफ़ सुनी जा सकती है
जंगल का सन्नाटा
अपनी ज़मीं को छोडकर
आदमी के भीतर पसर गया है
और आदमी...?
सन्नाटे के साथ
जंगल में उतर गया है
चीड़ के पत्तों के बीच उगा अंधेरा
बड़ा होता जा रहा है
एक विकराल गिद्ध
अपना डैना फैला कर
कब से इंतज़ार में है - पर
गिद्ध से बेख़बर
भीतर बैठी काली-खुंखार जंगली बिल्ली
पैने पंजों से गीली मिट्टी को खुरचते हुए
खुद प्रतीक्षारत है-
सुबह ,
आकाश में जहाँ लाल गोट-सा सूरज था
अब ,
जंगल-जलेबी सा चाँद
खिलखिला रहा है
शोर थमने का नाम नहीं ले रहा
घने पेड़ों की छाँव
ज़िन्दगी का आसरा छीन कर
खुद बेघर हो गई
एक डर-
जो हर रात
मुझे सपने में डराता है
पूरा का पूरा जंगल
अपनी जड़ों को छोड़ कर
मेरे घर की छत से होता हुआ
ड्राइंगरूम...बेडरूम...बाथरूम
और अब
हमारी सोच में भी उतरने लगा है
सोचती हूँ-
यह शहर कहाँ जाएगा?
मेरे ड्राइंगरूम के रोशनदान पर बैठी चिड़िया
तिनका-तिनका बटोर कर बनाए गए घोंसले को
निहारती जड़ हो चुकी है
खुले आकाश में
अपने नन्हें सोनचिरैयों के साथ
उड़ने का उसका आकांक्षित सपना
दम तोड़ने लगा है
सुनामी की यह कैसी भयावह लहर उठी
जहाँ जंगल था-
वहाँ अब शहर है
और मेरा वह खूबसूरत शहर
और उसका घरौंदा, मंदिर...बगीचा
सफ़ेद झरने का मीठा पानी
शान्त...धीर बहती नदी
गझिन अंधेरे की चपेट में आकर
खुंखार जीव-जंतुओं से भरे जंगल में
तब्दील हो चुका है...|
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (07-05-2019) को "पत्थर के रसगुल्ले" (चर्चा अंक-3328) पर भी होगी।
ReplyDelete--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
आभार !
Deleteअच्छा बिम्ब बना है 👍
ReplyDeleteशुक्रिया
Deleteबहुत ख़ूब
ReplyDeleteसादर
आभार अनीता जी
Deleteजंगल का सन्नाटा
ReplyDeleteअपनी ज़मीं को छोडकर
आदमी के भीतर पसर गया है...बहुत ख़ूब
बहुत धन्यवाद आपका...|
Deleteबहुत अच्छी प्रस्तुति संवेदनशील हृदयस्पर्शी मन के भावों को बहुत गहराई से लिखा है
ReplyDeleteशुक्रिया संजय जी
Deleteहर शब्द अपनी दास्ताँ बयां कर रहा है आगे कुछ कहने की गुंजाईश ही कहाँ है बधाई स्वीकारें
ReplyDeleteबहुत धन्यवाद आपका
Deleteआभार !
ReplyDeleteआभार !
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