A Hindi personal blog of fiction which includes short stories and poems. Some memoirs and articles are also there written in Hindi.
Thursday, April 29, 2010
ये संस्कारहीन बुजुर्ग...
कहा जाता रहा है कि बडे-बुजुर्ग हमारे आदर्श हैं...पर आज के बुजुर्गों को क्या कहें ? ये अपने बच्चों को अच्छे संस्कार देने की बजाय खुद इतने अधिक संस्कारहीन हो चुके हैं कि उन्हें बुजुर्ग कहते हुए भी शर्म आती है । आज कई गली-मोहल्लों में ऐसे रिटायर्ड बुजुर्ग मिल जाएँगे जो अपनी आवारगी से युवा पीढी को भी शर्मिन्दा करते हैं । छत के छज्जे पर खडे होकर आने-जाने वाली महिलाओं को ताकना , हर वक्त नए व्यंजन खाने के नाम पर घर की महिलाओं को तंग करना , घर की ही बहू-बेटियों की प्राइवेसी में दखल देकर उनका जीना हराम करना , बच्चों के ऊपर बिना बात चीखना-चिल्लाना आदि आम बात है । बुजुर्गियत की आड में संस्कारहीनता का यह कौन सा अपराध समाज में पनप रहा है और इससे निज़ात पाने का , इसे सुधारने का क्या उपाय है , यह सोचने की बात नहीं है क्या...?
बहिन प्रेम जी , संस्कार अगर नहीं हैं तो बुज़ुर्ग या जवान होने से कुछ फ़र्क़ नहीं पड़ता । भगवा चोला पहने कितने राक्षस अपनी काली करतूतों को छिपा रहे हैं? कुलीनता की आड़ मे कुकर्म करने वालों की भी कहाँ कमी है । अरबो रुपयों का घोटाला करने वाले सुरा-सुन्दरी के आकर्षण में देश की अस्मिता को दाँव पर लगाने वाले क्या हैं? समाज में ऐसे मुखौटाधारियों की कमी नहीं है । समाज के लिए ये सभीगहन चिन्ता का कारण हैं।
ReplyDeleteबहुत सही कहा है...।
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