Wednesday, September 28, 2011


कविता
                             अपनी बेटी के लिए

                 अपनी युवा बेटी के लिए
                 मुझे कोई भी उपमा
                 ठीक नहीं लगती
                 यद्यपि,
                 वह खिले हुए गुलाब सी
                 तरोताज़ा और खूबसूरत है
                 उसकी नर्म-गुलाबी त्वचा
                 पंखुड़ियों की कोमलता समेटे है
                 इसीलिए,
                 उसे देख कर मुझे
                 किसी बगीचे में खिले
                 खूबसूरत गुलाब की याद आई है
                 पर,
                 उस याद को मैने झटक दिया है
                 क्योंकि,
                 न जाने क्यों
                 गुलाब की नियति मुझे डराती है
                 मैं अपनी बेटी के लिए
                 चाँद-तारों को भी उपमित नहीं करना चाहती
                 जो चीज़ मेरी पहुँच से दूर है
                 उसे बेटी की ज़िन्दगी के
                 समानान्तर क्यों लाऊँ?
                 मुझे तो अपनी बेटी के लिए
                 बस यही उपमा ठीक लगती है कि
                 वह उगते हुए सूरज का
                 एक ऐसा अक्स है
                 जो पूरी दुनिया को रौशन करता है
                 पर,
                 उससे भी ज़्यादा
                 मुझे लगता है
                 जैसे-
                 मेरा डूबता हुआ जीवन
                 उसके ख़ूबसूरत चेहरे पर
                 ज़ुल्फ़ों के घने अंधेरे के बीच भी
                 चाँद की तरह मुस्करा रहा है
                 और मेरा बचपन
                 उसकी आँखों की झील में
                 एक सुनहरा सपना बन कर
                 डोल रहा है।



(दोनों  चित्र गूगल से साभार)

11 comments:

  1. मुझे तो अपनी बेटी के लिए
    बस यही उपमा ठीक लगती है कि
    वह उगते हुए सूरज का
    एक ऐसा अक्स है
    जो पूरी दुनिया को रौशन करता है

    सार्थक अभिव्यक्ति...बधाई और शुभकामनाएँ|

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  2. बहन मानी जी आपने इस कविता में अपना पूरा व्यक्तित्व रचा बसा दिया है । कारण बेटी माँ का ही प्रतिरूप है ।मैं तो बेटी को इस दुनिया की सबसे बड़ी नियामत मानता हूँ। मेरे लिए तो बेटी वेद की ॠचा है , साम गान है ; जिसका स्वर सृष्टि के अन्त तक भी कायम रहता है ।
    भगवान का भजन न कर पाऊँ तो किसी को बेटी कहकर आवाज़ दे दूँ ; आरती का पुण्य मिला महसूस करता हूँ । आपकी कविता मन -वीणा के तारों ओ झ्गंकृत कर गई

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  3. वह उगते हुए सूरज का
    एक ऐसा अक्स है
    जो पूरी दुनिया को रौशन करता है

    aapki beti hai hi aesi
    sunder kavita bahut bahut badhai
    rachana

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  4. बेटी के लिए इससे बेहतर तोहफा और क्या होगा?
    और ये प्रियंका जी(शायद उन्ही के लिए लिखा गया है) को कितना पसंद आया होगा, अनुमान लगा सकता हूँ!! :)

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  5. मानी जी ,
    बहुत सुन्दर कविता है बेटी के लिए ....
    माँ के आँगन
    फूलों जैसी बिटिया
    दिव्य सर्जना
    इस कविता में माँ ममता का सुन्दर चित्रण है ....माँ के लिए बेटी ... दुनिया में सबसे उत्तम है ...यही तो .....
    सूर्य उजाला
    सुबह की आरती
    लाडो बिटिया
    आपकी यह कविता मन में नई तरंगों की हलचल छेड़ गई |
    हरदीप

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  6. मानी जी ,
    बहुत सुन्दर कविता है बेटी के लिए ....
    माँ के आँगन
    फूलों जैसी बिटिया
    दिव्य सर्जना
    इस कविता में माँ ममता का सुन्दर चित्रण है ....माँ के लिए बेटी ... दुनिया में सबसे उत्तम है ...यही तो .....
    सूर्य उजाला
    सुबह की आरती
    लाडो बिटिया
    आपकी यह कविता मन में नई तरंगों की हलचल छेड़ गई |
    हरदीप

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  7. मेरा डूबता हुआ जीवन
    उसके ख़ूबसूरत चेहरे पर
    ज़ुल्फ़ों के घने अंधेरे के बीच भी
    चाँद की तरह मुस्करा रहा है
    और मेरा बचपन
    उसकी आँखों की झील में
    एक सुनहरा सपना बन कर
    डोल रहा है।..
    sach jab bache apni jindagi mein aa jaate hai to phir unmein hi apni jindagi dikhti hai ..ham unke liye hi to jeene ke aadi ho jaate hai..
    sundar mamtamayee prastututi padhkar man ko bahut ahha laga..
    haardik shubhkamnayen!

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  8. खूबसूरत रचना। बेटी को आशीर्वाद।

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